प्रायः ज्योतिष में कुण्डली दिखाते वक्त लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं अपने जीवन में कितना विकास करूँगा ! आज में इसकी गणना का सिधान्त बतला रहा हूँ !
जैमिनी ज्योतिष में राहु और केतु को छोड़कर अन्य सभी सातों ग्रहों को उनके अंश, कला तथा विकला के आधार पर उनका अवरोही क्रम में दर्शाया जाता है ! इस प्रकार सात कारक हमें प्राप्त होते हैं ! जैमिनी ज्योतिष में सभी ग्रहों के अंश, कला तथा विकला आदि की गणना भली-भाँति करनी चाहिये ! सातों ग्रहों को उनके अंशों के आधार अवरोही क्रम में लिखकर यह देखने का प्रयास करना चाहिये कि यदि किसी ग्रह के अंश तथा कला बराबर है, तब उस ग्रह का मान विकला तक देखकर निर्णय लेना चाहिये कि कौन-सा ग्रह किस क्रम में आना है !
सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को तालिका में सबसे ऊपर लिख देना चाहिए ! उसके बाद उससे कम अंश वाले ग्रह को लिखना चाहिए और इसी प्रकार अन्य सभी ग्रहों को भी क्रम से लिखें ! सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को आत्मकारक कहा जाता है ! उसके बाद वाले ग्रह को अमात्यकारक कहते हैं ! अमात्यकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह भ्रातृकारक कहलाता है ! भ्रातृकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह मातृकारक कहलाता है ! मातृकारक के बाद वाले ग्रह को पुत्रकारक कहते हैं ! पुत्रकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह ज्ञातिकारक कहलाता है ! सबसे कम अंश वाला ग्रह दाराकारक कहलाता है ! इन सभी कारकों के अनुसार जातक पर पड़ने वाले प्रभावों को विस्तार पूर्वक बताया जा सकता है !
उदहारण के लिये जैसे कि व्यापार या व्यवसाय के बारे में जानना है तो हम कुण्डली में जैमिनी ज्योतिष के अनुसार अमात्यकारक स्थिति को देखने का प्रयास करेंगे ! यदि कुण्डली में अमात्यकारक लग्न से केन्द्र, त्रिकोण या एकादश भाव में स्थित है तो व्यवसाय में उत्तम स्थिति का संकेत प्राप्त होता है ! अमात्यकारक पर जिस ग्रह की दृष्टि होगी उस ग्रह के स्वभाव और गुण के अनुसार फल प्राप्त होता है ! अमात्यकारक पर अगर शुभ ग्रहों की दृष्टि है तो व्यापार के लिए शुभ संकेत समझना चाहिए और अगर अशुभ ग्रहों की दृष्टि है तो व्यापार में असफलता और रूकावट का संकेत समझा जाता है !
इसी प्रकार अमात्यकारक के साथ ग्रहों की शुभ युति होने पर व्यक्ति व्यापार में सफल होता है और उसे कामयाबी मिलती है जबकि अशुभ ग्रहों की युति होने पर व्यापार में सफलता नहीं मिल पाती है !