सनातन जीवन पद्धति में 100 वर्ष के जीवन को चार हिस्सों में बांटा गया है ! पहला प्रथम 25 वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्य, जीवन 25 से 50 वर्ष की आयु तक दांपत्य जीवन, 50 से 75 वर्ष की आयु तक वानप्रस्थ जीवन और 75 वर्ष की आयु के बाद मृत्यु तक सन्यासी का जीवन व्यतीत करने का परामर्श हमारे सनातन जीवन पद्धति के निर्माताओं ने दिया है !
इसके पीछे बहुत बड़ा वैज्ञानिक कारण था ! काल के प्रवाह में हर संस्कृति में तेजी से विकास होता है ! मनुष्य की आयु जब 50 वर्ष से अधिक हो जाती है तो वह अपने अंदर बहुत अधिक परिवर्तन करने की इच्छा नहीं रखता है ! उस स्थिति में यदि 50 वर्ष की आयु के बाद भी वह व्यक्ति दंपत्ति जीवन में बना रहेगा तो अगली पीढ़ी को परिवर्तित समाज में नई व्यवस्था के साथ विकसित होने का अवसर नहीं मिलेगा या दोनों पीढ़ियों के मध्य संघर्ष की स्थिति बनी रहेगी ! जिसे आधुनिक भाषा में जनरेशन गैप कहते हैं !
इसी संघर्ष को न पनपने देने के लिये हमारे सनातन जीवन पद्धति में महर्षिओं ने यह व्यवस्था दी कि 50 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति को वानप्रस्थ जीवन निर्वहन करना चाहिये अर्थात दांपत्य जीवन में रहते हुए भी अपने दांपत्य की समस्त जिम्मेदारी अपनी अगली पीढ़ी को देकर मात्र मार्गदर्शक के रुप में अपना जीवन यापन करना चाहिये ! अनावश्यक अपने अगली पीढ़ी के कार्य पध्यति और दांपत्य जीवन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये !
किंतु वर्तमान आधुनिक जीवन शैली में सारे मानक बदल गये हैं ! आज स्थिति यह है कि व्यक्ति का विवाह जो 25 वर्ष की आयु में हो जाना चाहिये ! वह उच्च शिक्षा लेने और आर्थिक रूप से स्थिर होने की प्रतीक्षा में 30 वर्ष से लेकर 35 वर्ष तक हो गई है !
उसका परिणाम यह हो रहा है कि जिसका विवाह 35 वर्ष की आयु में हो रहा है ! उस विवाह के 2 वर्ष बाद जब उसको संतान होती है तो उस संतान की प्राप्ति उस व्यक्ति को 37 वर्ष की आयु में होती है ! परिणामत: जब वह बच्चा 25 वर्ष की आयु में अपनी उच्च शिक्षा पूरी करके व्यापार व्यवसाय के लिये आगे बढ़ता है तब तक पिता की आयु 62 वर्ष के आसपास हो जाती है !
और 50 वर्ष की आयु के उपरांत जब पिता शारीरिक रूप से शिथिल होने लगता है तो बच्चे के उच्च शिक्षा लेने के दौरान पिता के अंदर अनावश्यक का एक मानसिक तनाव पैदा होता है ! जो बच्चे के समग्र भविष्य निर्माण के लिये बाधक बन जाता है !
अतः ऐसी स्थिति में यह सर्वथा उचित है कि विवाह को अधिकतम 26 वर्ष तक अवश्य कर लेना चाहिये और संतान प्राप्ति में भी अनावश्यक का विलंब नहीं करना चाहिये ! अन्यथा पिता की आयु अधिक बढ़ जाने पर बच्चे के विकास में पिता बाधक बनने लगते हैं !
इसलिये यदि आप अपने आने वाली पीढ़ी को समुचित विकास का अवसर देना चाहते हैं ! तो बेहतर है कि वर्तमान में आप अपना विवाह और संतान प्राप्ति उचित समय पर करें ! जिस से आने वाली पीढ़ी को अपने तरीके से विकास करने का समुचित अवसर प्राप्त हो सके !
कार्य की व्यस्तता शिक्षा और आगे बढ़ने की ललक में व्यक्ति की आयु कब बढ़ जाती है ! यह उसे पता भी नहीं चलता है और इस पर कहीं भी कोई सामाजिक चिंतन नहीं हो रहा है ! ऐसी स्थिति में मेरा यह अनुरोध है कि समाज में सामाजिक विषयों पर चिंतन करने वाली संस्थाओं को युवाओं को सही उम्र में विवाह के लिये प्रेरित करना चाहिये तथा उन्हें विलंब से विवाह करने के दुष्परिणामों से अवगत भी करवाना चाहिये ! जिससे भारत की सामाजिक पारिवारिक संरचना नष्ट न हो और आने वाली पीढ़ी को भी अपने विकास का समुचित अवसर मिल सके ! ऐसी मैं कामना करता हूं !