इल्युमिनाटी द्वारा लोकतंत्र का अपरहण !! Yogesh Mishra

मात्र खुले दिमाग के चिन्तक ही इस लेख को पढ़ें !

लगभग विश्व की प्रत्येक सरकार में इल्युमिनाटी के लोग होते हैं ! जिन्हें कोई भी अलग नहीं कर सकता है ! विश्व की दशा और दिशा यही लोग निर्धारित करते हैं !

इल्युमिनाटी गुप्त संस्था तंत्र द्वारा नियन्त्रित होती है ! इसमें अलग-अलग देशों में अलग-अलग नाम से कई संस्थायें काम करती हैं ! इल्युमिनाटी के आधीन प्रत्येक संस्था द्वारा अपने सदस्य बनाने पर उन सदस्यों को तंत्र की प्रारम्भिक दीक्षा दी जाती है ! जो अलग अलग व्यक्ति के बौद्धिक स्तर के अनुसार भिन्न भिन्न स्तर की होते है !

इस संगठन की संरचना एक पिरामिड की आकृति में होता है ! जिसमें नीचे प्रारम्भिक दीक्षित सदस्यों की संख्या अधिक होती है तथा शनै शनै अपनी योग्यता से व्यक्ति आगे बढ़ता जाता है, किन्तु किसी भी स्तर का सदस्य अपने से उच्च स्तर के सदस्य की योग्यता से अनभिज्ञ होता है !

फ्रिमेसनरी में आप तब तक सदस्यता ग्रहण नहीं कर सकते जब तक कोई दो सदस्य आपकी जिम्मेदारी नहीं ले लेते हैं तथा सदस्यता ग्रहण करने वाले के बारे में पूरी जानकारी एकत्रित की जाती है ! जैसे कि वह कैसा व्यक्ति है तथा उसे नये सदस्य को तरह तरह के मानसिक परिक्षण से गुजरना पड़ता है और पूरी तरह से उचित सिद्ध होने के उपरान्त भी यदि परिषद् में एक सदस्य भी अपिलार्थी को सदस्यता देने से मना कर दे तो उस प्रार्थी को सदस्यता नहीं दी जाती !

यदि भ्रातृत्व संगठन सदस्य अपने किसी कार्यविशेष हेतु किसी को प्रयोग में लेना चाहते हैं तो उसका विशेष तरह से परीक्षण किया जाता है ! इसका कदापि यह अर्थ नहीं है कि वह मात्र बुरे लोगों में से ही किसी का चुनाव करते हों ! अच्छे क्यों के लिये भी चुनाव किया जाता है !

इस संगठन में प्रायः अविवाहित लोग ही होते हैं ! जो अलग अलग देशों में इस देश की सभ्यता, संस्कृति, राष्ट्रीयता की दुहाई देते हैं और देश को मुख्यालय की नीति के अनुरूप चलने का प्रयास करते हैं ! यहाँ कोई भी व्यक्ति कभी भी, किसी भी स्थाई पद पर नहीं होता है !

यहाँ कार्यकर्ताओं के तीन स्तर होते हैं !
1. जीवन समर्पित अर्थात यह वह लोग होते हैं जो अविवाहित होते हैं और अपना सम्पूर्ण जीवन संगठन के उद्देश्यों के प्रति निछावर कर देते हैं !
2. दूसरे वह लोग जो उस देश के निवासी होते हैं और पूर्व के अधिकारीयों के सहयोगी होते हैं ! यही लोग इन संगठनों को आर्थिक व सामाजिक सहायता करते हैं !
3. वेतन भोगी कर्मचारी !
अधिकतर यह गुप्त संस्थायें सेवा संस्थाओं के रूप में कार्य करती हैं ! पर यह मात्र छलावा है ! इन संस्थाओं में सदस्यों को ब्रह्माण्ड के कुछ ऐसे रहस्यों की जानकारी दी जाती है जो सामान्य तौर पर विद्यालयों ने नहीं पढ़ाया जाता है ! इनमें महिलाओं के भी कुछ संगठन हैं !

यह संगठन उस देश के प्रसिद्ध लोगों को जोड़ने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं ! जिसमें राजनीतिज्ञ, धनिक वर्ग तथा ऐसे लोग जिनके द्वारा एक विशाल जनसमूह जुड़ा हो ! इनमें से कुछ को तो तो उच्च स्तर पर पहुँचाया जाता है किन्तु उनका चुनाव अत्यन्त सावधानी पूर्वक किया जाता है !

वहाँ उच्च स्तर पर जाने हेतु उन्हें उनके धर्म के चिह्नों को अपमानित करने हेतु कहा जाता है ! सामाजिक संरचना तोड़ने हेतु कहा जाता है ! उस देश के इतिहास को बदलने हेतु कहा जाता है ! देश की अर्थ व्यवस्था को नष्ट करने हेतु कहा जाता है ! देश में इनके माध्यम से बेरोजगारी बढ़वाई जाती है ! निम्न स्तर की महंगी शिक्षा व्यवस्था लागू करवाई जाती है ! शासन को संवेदना विहीन निरंकुश बनाया जाता है ! न्यायपालिका अनुपयोगी कर दी जाती है ! राजनीति में पूंजीपतियों का प्रवेश करवा कर चुनाव महंगे करवा दिये जाते हैं ! राजनीति में अपराधियों का खुला प्रवेश करवाया जाता है ! जो ऐसा करते हैं उनको आगे भेज दिया जाता है अन्यथा उन्हें धन्यवाद देकर वापस भेज दिया जाता है !

मेरा मानना है कि इस संगठन के उच्च स्तर पर पहुँचे हुये लोगों में अद्रश्य आसुरी शक्तियों से संवाद करने की क्षमता विकसित हो जाती है ! जिससे यह संवाद अथवा सहायता की प्राप्ति की कल्पना कर सकते हैं ! इसके लिये यह खुल के तंत्र का प्रयोग करते हैं ! अधिकतर पाश्चात्य विचारकों का मानना है कि किसी देश को ख़त्म करने के लिये इल्युमिनाटी व इसके सभी अनुषांगिक संगठनों के सदस्यों को अच्छी क्षमता वाले सभी लौकिक सुख सहज ही उपलब्ध करवाये जाते हैं ! किन्तु इसके बदले में उनकी आत्मा और उनका जमीर ले लिये जाता है !

सुकरात ने कहा था कि भारत का गणतंत्र सर्व श्रेष्ठ है ! इसी ने सर्वप्रथम यूरोप को गणतंत्र का सिद्धान्त पढ़ाया था तथा वहां पर भी यह सिद्धान्त भारतीय गणतन्त्रात्मक शासन की विधि के अनुरूप विकसित किया था ! वेदों में एक मन्त्र है “ॐ गणनान्त्वा गणपति गुंग हवामहे” यहाँ मन्त्रों में गणेश को गणों के पति अर्थात् स्वामी कहा गया हैं !

वस्तुतः कई परिवारों के समूह को गण कहा गया है ! इसमें ऐसा हो सकता है कि ये मात्र परिवारों का ही नहीं अपितु कई ग्रामों को समूह भी हो उसका प्रधान गणप्रमुख होता है तथा इन गणप्रमुखों का स्वामी राजा अथवा गणप्रधान होगा !

ऐसे में सुकरात को यह महान् भारत में प्रचलित यह गणतन्त्रात्मक व्यवस्था अच्छी लगी तो उसने इसे ही सभी के लिये लागू करना चाहा इसीलिये उसने इस व्यवस्था को वहाँ ईजिप्ट, रोम, इटली, सिसली आदि में फैलाने की इच्छा रखी ! सुकरात इस व्यवस्था के अन्तर्गत राजा को समाप्त करना चाहता था क्योंकि वहाँ की प्रजा राजा और पुरोहित दोनों के मध्य पिसती थी ऐसे में वह राजा से मुक्ति चाहते थे उसी से एक कृतिम शासक “सरकार” विचारधारा का सूत्रपात हुआ और इल्युमिनाटी आज इसी कृतिम शासक को नियुक्त, नियंत्रित, निर्देशित तथा निर्धारित कर रही है ! राष्ट्र को बचाना है तो इस रहस्य को समझाना होगा !!

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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