कल मैं राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रताप चंद्र जी से मिला था ! काफी देर तक चर्चा करने के बाद जो उस चर्चा का निष्कर्ष निकला वह यह था कि राष्ट्र की व्यवस्था बदलने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर स्वस्फूर्त आंदोलन होना चाहिये !
अर्थात कहने का तात्पर्य है कि जब किसी व्यक्ति द्वारा छोटे स्वार्थ के लिये कोई बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाता है तो उस आंदोलन से कुछ क्षणिक लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं लेकिन वह आंदोलन कभी भी राष्ट्रहित में बड़ा परिवर्तन नहीं कर सकता है ! उदाहरण के लिये राजीव दीक्षित और स्वामी रामदेव ने मिलकर भारत स्वाभिमान न्यास की स्थापना की थी ! कुछ समय बाद राजीव दीक्षित की हत्या हो गई !
और नेता बनने के चक्कर में रामदेव ने राजीव दीक्षित द्वारा बनाये गये भारत स्वाभिमान न्यास के प्लेटफार्म पर 4 जून 2011 को दिल्ली के रामलीला मैदान में व्यवस्था परिवर्तन के लिये एक बहुत बड़ा आंदोलन करने का निर्णय लिया ! लाखों की संख्या में पूरे देश भर से लोग इकट्ठे हुये और दो ही दिन में उस आंदोलन की हवा निकल गई ! स्वामी रामदेव के आन्दोलनकारी कायदे से कूटे गये और स्वयं रामदेव को अपनी रक्षा के लिये महिलाओं का सलवार कुर्ता पहनकर भागना पड़ा ! पूरा का पूरा भारत स्वाभिमान आंदोलन ध्वस्त हो गया ! आज उसका कोई नाम लेने वाला भी नहीं है ! भारत स्वाभिमान न्यास करोड़ों रुपये का जमा चन्दा कहाँ गया कुछ पता नहीं चला !
इसी मौके का लाभ उठाकर व्यवस्था परिवर्तन और भ्रष्टाचार मिटाओ के नाम पर अरविंद केजरीवाल ने एक बड़े चेहरे के सहयोग से इन्हीं भारत स्वाभिमान की विचारधारा से जुड़े हुये राजीव वादियों को इकट्ठा कर पुनः एक बढ़ा आंदोलन खड़ा किया और वह आंदोलन किसी अंजाम तक पहुंचता इससे पहले ही उस आंदोलन की आत्मा का रूपांतरण करके उसे एक राजनीतिक दल के रूप में परिवर्तित कर दिया !
निसंदेह कहा जा सकता है कि उसी आन्दोलन की बदौलत अरविंद केजरीवाल आज दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं ! लेकिन बात जब राष्ट्र हित या राष्ट्रीय चिंतन की होगी तो वह आन्दोलन पूरी तरह असफल ही माना जायेगा !
और यह भी कहा जायेगा कि एक आंदोलन से निकला हुआ राजनीतिक दल कभी भी अपनी विचारधारा का स्थाई प्रभाव किसी भी समाज पर नहीं छोड़ सकता और उसी का परिणाम है कि राष्ट्र के निर्माण के लिये अब दोबारा कोई आंदोलन खड़ा करने में लोगों का जन सहयोग नहीं मिलता है क्योंकि रामदेव और अरविन्द केजरीवाल दोनों ने ही व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर क्षणिक स्वार्थ के लिये समाज को ठगा है !
इसके विपरीत राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी ने स्वतंत्र, शांत और गंभीर चिंतन के साथ राष्ट्र के पुनर्निर्माण हेतु चिंतन कर एक राजनीतिक दल का निर्माण किया ! जो राजनीतिक दल निरंतर अपनी पार्टी का प्रचार न करके राष्ट्र हित की योजनाओं को प्रचारित प्रसारित करता रहता है !
उसी का परिणाम है कि आज भारत की “राजनीति” राजनीतिक दलों के चंगुल से बाहर निकलने के लिये बेताब हो रही है और ई.वी.एम. मशीन के ऊपर राजनीतिक दल के चुनाव चिन्ह के साथ-साथ चुनाव प्रत्याशी की फोटो भी लगाई जाने लगी है !
यह राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी की उपलब्धि भारत के “राष्ट्रीय लोकतंत्र के दिशा में अति महत्वपूर्ण सफल कदम है किंतु शासन सत्ता की वर्तमान आर्थिक नीतियों के कारण भारत का युवा जो आज पुरी योग्यता और क्षमता रखता है वह भी दर-दर बेरोजगार होकर ठोकर खाने को मजबूर है !
जिस पर किसी भी राजनीतिक दल ने कभी चिंतन नहीं किया ! किंतु अति संवेदनशील राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इस विषय पर विचार किया और शिक्षित युवाओं को अपने स्वाभिमान के साथ जीने के लिये “शिक्षित रोजगार गारंटी” दिलवाने हेतु बड़ा अभियान चलाया !
किंतु इस तरह के बड़े कार्य किसी एक राजनीतिक दल के प्लेटफार्म पर नहीं किये जा सकते हैं ! इसके लिये समाज के हर वर्ग को जोड़ा जाना आवश्यक है ! इसलिये यह अति आवश्यक है कि “शिक्षित रोजगार गारंटी” को एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन के रूप में विकसित किया जाये ! जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी अपने अस्तित्व और स्वाभिमान के साथ राष्ट्र निर्माण में पूर्ण सहयोग कर सकें !
क्योंकि आज तक जितने भी राजनीतिक दल हुये उन्होंने युवाओं को मात्र अपना वोट बैंक समझा है ! कभी भी इन युवाओं के आत्म स्वाभिमान के न मिलने की पीड़ा को समझने की कोशिश नहीं की है ! इसलिये यह अति आवश्यक हो गया है कि राष्ट्र के अंदर युवा जो सबसे बड़ी संख्या में है, उनके आत्म स्वाभिमान के रक्षार्थ राष्ट्र में एक बड़ा आंदोलन खड़ा होना चाहिये ! जिससे राष्ट्र के युवा का आत्मस्वाभिमान और राष्ट्र का स्वाभिमान दोनों ही सुरक्षित रह सके !
यही अंतर है एक आंदोलन से निकले हुये स्वार्थ पूर्ण राजनीतिक दल में और एक राजनैतिक दल से निकले हुये राष्ट्र के स्वाभिमान की रक्षा हेतु प्रारंभ हुये आंदोलन में !!