श्राप हिन्दू मान्यताओ के अनुसार यह वह नकारात्मक आध्यात्मिक शक्ति है ! जिसे वर्षो की साधक द्वारा कमाया जाता तो है ! पर क्रोध में आकर दूसरे का अनिष्ट करने के लिये क्षण भर में नष्ट कर देता है !
आज के तकनीकी के लिहाज़ से देखे तो मान लीजिये कोई व्यक्ति इन्वर्टर की बैटरी को बड़ी मेहनत से चार्ज करता है ताकी वह चार्ज उसके किसी न किसी रूप में फायदेमंद है ! अब उसे गुस्से में आकर खाली कमरे में चला दिया जाये ! तो उस कमरे के पंखे लाईट आदि तो सब चलेगा लेकिन उसका कोई सकारात्मक आध्यात्मिक लाभ नहीं होगा !
इसी तरह श्राप जिसे दिया जाता है ! उसका अहित तो होता ही है ! लेकिन जो श्राप दे रहा है वह खुद अपनी कमाई खो देता है और साथ ही साथ श्राप देने के कारण अपने कर्मो में पाप को भी बढ़ा लेता है ! हिन्दू धर्म और यहाँ तक कि सभी धर्मों के अनुसार दुसरो का अहित करने का विचार छोड़िये तभी आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है ! किसी के अहित की सोचना भी अपना अहित करना ही है !
कलयुग में शाप फलित कम होते हैं ! अत: लोग पर विश्वास नहीं करते हैं ! शाप देने की शक्ति आती है तपस्या ,मंत्र आदि से, धर्म पर चलने से, सत्यवादिता से, भक्ति से व योग से अथवा भगवान या महापुरुष द्वारा दिए गए वरदान से ! .अत्याचार अनाचार पापाचार व्यभिचार आदि से संकल्प की शक्ति कमजोर पड़ जाती है ऐसा ब्रह्मलीन विद्वान कर पात्री जी का भी मत हैi किसी को भी शाप देने से तपस्या का श्रय होता है !
पौराणिक काल के चौबीस चर्चित श्राप औऱ उसके पीछे की छुपी कथायें संक्षेप में ! हिन्दू पौराणिक ग्रंथो में अनेको अनेक श्रापों का वर्णन मिलता है ! हर श्राप के पीछे कोई न कोई कथायें जरूर मिलती है ! आज हम आपको हिन्दू धर्म ग्रंथो में उल्लेखित चौबीस ऐसे ही प्रसिद्ध श्राप और उनके पीछे की कहानी बताएँगे !
1. युधिष्ठिर का स्त्री जाति को श्राप : – महाभारत के शांति पर्व के अनुसार युद्ध समाप्त होने के बाद जब कुंती ने युधिष्ठिर को बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था तो पांडवों को बहुत दुख हुआ ! तब युधिष्ठिर ने विधि-विधान पूर्वक कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया ! माता कुंती ने जब पांडवों को कर्ण के जन्म का रहस्य बताया तो शोक में आकर युधिष्ठिर ने संपूर्ण स्त्री जाति को श्राप दिया कि – आज से कोई भी स्त्री गुप्त बात छिपा कर नहीं रख सकेगी !
2. ऋषि किंदम का राजा पांडु को श्राप : – महाभारत के अनुसार एक बार राजा पांडु शिकार खेलने वन में गए ! उन्होंने वहां हिरण के जोड़े को मैथुन करते देखा और उन पर बाण चला दिया ! वास्तव में वो हिरण व हिरणी ऋषि किंदम व उनकी पत्नी थी ! तब ऋषि किंदम ने राजा पांडु को श्राप दिया कि जब भी आप किसी स्त्री से मिलन करेंगे ! उसी समय आपकी मृत्यु हो जाएगी ! इसी श्राप के चलते जब राजा पांडु अपनी पत्नी माद्री के साथ मिलन कर रहे थे, उसी समय उनकी मृत्यु हो गई !
3. माण्डव्य ऋषि का यमराज को श्राप : – महाभारत के अनुसार माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे ! राजा ने भूलवश उन्हें चोरी का दोषी मानकर सूली पर चढ़ाने की सजा दी ! सूली पर कुछ दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब उनके प्राण नहीं निकले, तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया ! तब ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार झूठे आरोप की सजा मिली !
तब यमराज ने बताया कि जब आप 12 वर्ष के थे, तब आपने एक फतींगे की पूंछ में सींक चुभाई थी, उसी के फलस्वरूप आपको यह कष्ट सहना पड़ा ! तब ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की उम्र में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता ! तुमने छोटे अपराध का बड़ा दण्ड दिया है ! इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम्हें शुद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा ! ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया !
4. नंदी का रावण को श्राप : – वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया ! वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा ! तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा !
5. कद्रू का अपने पुत्रों को श्राप : – महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थीं ! कद्रू सर्पों की माता थी व विनता गरुड़ की ! एक बार कद्रू व विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और शर्त लगाई ! विनता ने कहा कि ये घोड़ा पूरी तरह सफेद है और कद्रू ने कहा कि घोड़ा तो सफेद हैं, लेकिन इसकी पूंछ काली है ! कद्रू ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने सर्प पुत्रों से कहा कि तुम सभी सूक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूंछ से चिपक जाओ, जिससे उसकी पूंछ काली दिखाई दे और मैं शर्त जीत जाऊं ! कुछ सर्पों ने कद्रू की बात नहीं मानी ! तब कद्रू ने अपने उन पुत्रों को श्राप दिया कि तुम सभी जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे !
6. उर्वशी का अर्जुन को श्राप : – महाभारत के युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए, तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गई ! यह देख अर्जुन ने उन्हें अपनी माता के समान बताया ! यह सुनकर क्रोधित उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया कि तुम नपुंसक की भांति बात कर रहे हो ! इसलिए तुम नपुंसक हो जाओगे, तुम्हें स्त्रियों में नर्तक बनकर रहना पड़ेगा ! यह बात जब अर्जुन ने देवराज इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के दौरान यह श्राप तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें कोई पहचान नहीं पायेगा !
7. तुलसी का भगवान विष्णु को श्राप : – शिवपुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक राक्षस था ! उसकी पत्नी का नाम तुलसी था ! तुलसी पतिव्रता थी, जिसके कारण देवता भी शंखचूड़ का वध करने में असमर्थ थे ! देवताओं के उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप लेकर तुलसी का शील भंग कर दिया ! तब भगवान शंकर ने शंखचूड़ का वध कर दिया ! यह बात जब तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया ! इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु की पूजा शालीग्राम शिला के रूप में की जाती है !
8. श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप : – पाण्डवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने शासन किया ! उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे ! एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए ! तब उन्हें वहां शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए, जो मौन अवस्था में थे ! राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाहिए, लेकिन ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया ! ये देखकर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया ! यह बात जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने श्राप दिया कि आज से सात दिन बात तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेगा, जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी !
9. राजा अनरण्य का रावण को श्राप : -वाल्मीकि रामायण के अनुसार रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था ! जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुई ! उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई ! मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा ! इन्हीं के वंश में आगे जाकर भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और रावण का वध किया !
10. परशुराम का कर्ण को श्राप : – महाभारत के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे ! सूर्यपुत्र कर्ण उन्हीं का शिष्य था ! कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक ब्राह्मण के रूप में दिया था ! एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे, उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया ! गुरु की नींद में विघ्न न आए, ये सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे, लेकिन उन्होंने परशुराम को नींद से नहीं उठाया ! नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण ब्राह्मण नहीं बल्कि क्षत्रिय है ! तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे !
11. तपस्विनी का रावण को श्राप : – वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था ! तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी ! रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा ! उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी !
12. गांधारी का श्रीकृष्ण को श्राप : – महाभारत के युद्ध के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण गांधारी को सांत्वना देने पहुंचे तो अपने पुत्रों का विनाश देखकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार पांडव और कौरव आपसी फूट के कारण नष्ट हुए हैं, उसी प्रकार तुम भी अपने बंधु-बांधवों का वध करोगे ! आज से छत्तीसवें वर्ष तुम अपने बंधु-बांधवों व पुत्रों का नाश हो जाने पर एक साधारण कारण से अनाथ की तरह मारे जाओगे ! गांधारी के श्राप के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण के परिवार का अंत हुआ !
13. महर्षि वशिष्ठ का वसुओं को श्राप : – महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह पूर्व जन्म में अष्ट वसुओं में से एक थे ! एक बार इन अष्ट वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया ! जब ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्होंने अष्ट वसुओं को श्राप दिया कि तुम आठों वसुओं को मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेना होगा और आठवें वसु को राज, स्त्री आदि सुखों की प्राप्ति नहीं होगी ! यही आठवें वसु भीष्म पितामह थे !
14. शूर्पणखा का रावण को श्राप : – वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था ! वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था ! रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ ! उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया ! तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा !
15. ऋषियों का साम्ब को श्राप : – महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार एक बार महर्षि विश्वामित्र, कण्व आदि ऋषि द्वारका गए ! तब उन ऋषियों का परिहास करने के उद्देश्य से सारण आदि वीर कृष्ण पुत्र साम्ब को स्त्री वेष में उनके पास ले गए और पूछा कि इस स्त्री के गर्भ से क्या उत्पन्न होगा ! क्रोधित होकर ऋषियों ने श्राप दिया कि श्रीकृष्ण का ये पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक भयंकर मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा समस्त यादव कुल का नाश हो जाएगा !
16. दक्ष का चंद्रमा को श्राप : – शिवपुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से करवाया था ! उन सभी पत्नियों में रोहिणी नाम की पत्नी चंद्रमा को सबसे अधिक प्रिय थी ! यह बात अन्य पत्नियों को अच्छी नहीं लगती थी ! ये बात उन्होंने अपने पिता दक्ष को बताई तो वे बहुत क्रोधित हुए और चंद्रमा को सभी के प्रति समान भाव रखने को कहा, लेकिन चंद्रमा नहीं माने ! तब क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दिया !
17. माया का रावण को श्राप : – रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था ! माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे ! एक दिन रावण शंभर के यहां गया ! वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया ! इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया ! उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया ! इस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई ! जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा ! तब माया ने कहा कि तुमने वासना युक्त होकर मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया ! इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी !
18. शुक्राचार्य का राजा ययाति को श्राप : – महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार राजा ययाति का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के साथ हुआ था ! देवयानी की शर्मिष्ठा नाम की एक दासी थी ! एक बार जब ययाति और देवयानी बगीचे में घूम रहे थे, तब उसे पता चला कि शर्मिष्ठा के पुत्रों के पिता भी राजा ययाति ही हैं, तो वह क्रोधित होकर अपने पिता शुक्राचार्य के पास चली गई और उन्हें पूरी बात बता दी ! तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने ययाति को बूढ़े होने का श्राप दे दिया था !
19. ब्राह्मण दंपत्ति का राजा दशरथ को श्राप : – वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार जब राजा दशरथ शिकार करने वन में गए तो गलती से उन्होंने एक ब्राह्मण पुत्र का वध कर दिया ! उस ब्राह्मण पुत्र के माता-पिता अंधे थे ! जब उन्हें अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में अपने प्राणों का त्याग कर रहे हैं, उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र वियोग के कारण ही होगी !
20. नंदी का ब्राह्मण कुल को श्राप: -शिवपुराण के अनुसार एक बार जब सभी ऋषिगण, देवता, प्रजापति, महात्मा आदि प्रयाग में एकत्रित हुए तब वहां दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर का तिरस्कार किया ! यह देखकर बहुत से ऋषियों ने भी दक्ष का साथ दिया ! तब नंदी ने श्राप दिया कि दुष्ट ब्राह्मण स्वर्ग को ही सबसे श्रेष्ठ मानेंगे तथा क्रोध, मोह, लोभ से युक्त हो निर्लज्ज ब्राह्मण बने रहेंगे ! शूद्रों का यज्ञ करवाने वाले व दरिद्र होंगे !
21. नलकुबेर का रावण को श्राप: – वाल्मीकि रामायण के अनुसार विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी ! अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया ! तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूँ ! इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूँ ! लेकिन रावण ने उसकी बात नहीं मानी और रंभा से दुराचार किया ! यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा !
22. श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप : – महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पाण्डव पुत्रों का वध कर दिया, तब पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम तक पहुंच गए ! तब अश्वत्थामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया ! ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा ! महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा ! तब अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी ! यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का शाप दिया था !
23. तुलसी का श्रीगणेश को श्राप : – ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार तुलसीदेवी गंगा तट से गुजर रही थीं, उस समय वहां श्रीगणेश तप कर रहे थे ! श्रीगणेश को देखकर तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया ! तब तुलसी ने श्रीगणेश से कहा कि आप मेरे स्वामी हो जाइए, लेकिन श्रीगणेश ने तुलसी से विवाह करने से इंकार कर दिया ! क्रोधवश तुलसी ने श्रीगणेश को विवाह करने का श्राप दे दिया और श्रीगणेश ने तुलसी को वृक्ष बनने का !
24. नारद का भगवान विष्णु को श्राप : – शिवपुराण के अनुसार एक बार देवऋषि नारद एक युवती पर मोहित हो गए ! उस कन्या के स्वयंवर में वे भगवान विष्णु के रूप में पहुंचे, लेकिन भगवान की माया से उनका मुंह वानर के समान हो गया ! भगवान विष्णु भी स्वयंवर में पहुंचे ! उन्हें देखकर उस युवती ने भगवान का वरण कर लिया ! यह देखकर नारद मुनि बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुमने मुझे स्त्री के लिए व्याकुल किया है ! उसी प्रकार तुम भी स्त्री विरह का दु:ख भोगोगे ! भगवान विष्णु ने राम अवतार में नारद मुनि के इस श्राप को पूरा किया !