अपने जमाने का मशहूर जर्मन चांसलर अडॉल्फ हिटलर उड़न तश्तरी की तरह विमान बनाने में लगभग सफलता प्राप्त कर ली थी ! उसने दूसरे विश्व युद्द के समय इसका एक प्रोटोटाइप का निर्माण कर सफल उड़ान भी भर ली थी ! लेकिन इससे पहले की वह अपनी इस योजना को अंतिम रूप दे पाता जर्मन की हर के कारण इस प्रोजेक्ट को अधूरे में ही छोड़ना पड़ा !
हिटलर की यह उड़न तश्तरी एक विशेष किस्म के तैलीय पारे और प्लैटिना के घर्षण से उत्पन्न ऊर्जा की शक्ति से चला करती थी ! जिससे उत्पन्न होने वाली ऊर्जा एक विशेष तरह का गुरुत्वाकर्षण विरोधी शक्ति पैदा करती थी ! जिसके प्रभाव से उड़न तश्तरी पृथ्वी से दूर हो जाती थी और उसके अंदर बैठे हुये व्यक्ति पर किसी भी तरह का कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता था और न ही इस यान को चलाने के लिये किसी भी तरह के पेट्रोल आदि की आवश्यकता थी !
यह यान रडार के पकड़ में भी नहीं आता था ! एक बार इस यान के बन जाने के बाद ऐसा अनुमान लगाया जाता था कि लगभग 1000 वर्ष तक इस यान को किसी भी तरह के अतिरिक्त ईंधन की कोई आवश्यकता नहीं है और यह विमान पृथ्वी ही नहीं अंतरिक्ष के दूसरे हिस्सों में भी आसानी से जा सकता था !
यह वही तकनीकी थी, जिसका प्रयोग एलियंस अपने उड़नतश्तरी में किया करते हैं ! हमने पूर्व के अपने कई लेखों में यह बतलाया है कि हिमालय के शंग्रीला घाटी के संतों की कृपा से हिटलर का संबंध रावण की तरह विभिन्न ग्रहों के एलियंस से हो गया था ! जिससे हिटलर को बहुत सी नई युद्ध तकनीक की जानकारी हुई थी और उसने द्वितीय विश्वयुद्ध में उन्हीं तकनीक का प्रयोग करते हुये अकेले फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और रूस को हरा दिया था
!
किंतु निर्णायक युद्ध के समय ब्रिटेन ने हिटलर के साथी “हिमलर” जो कि जर्मन का सेनानायक भी था ! उसे अपनी तरफ मिला लिया था और हिटलर की सेना को नकली बारूद, हथियार, सूचना आदि देकर के कर हिटलर को युद्ध में हरा दिया था ! जिसके हजारों प्रमाण आज भी ब्रिटेन और रूस के गुप्तचर विभाग के फाइलों में दर्ज हैं !
यह विमान फाइटर जहाज न दिखकर एक उड़न तश्तरी की तरह नजर आते थे ! एक एविएशन एक्सपर्ट के अनुसार इसे जर्मन में ‘फ्लाईंग विंग’ कहा जाता था क्योंकि इसमें फिन ( विमान का वो पिछला हिस्सा जो हवा का दबाव और दिशा को नियंत्रित करता) नहीं लगा था ! जिससे इस विमान का आकार बहुत छोटा हो गया था इसलिये इसे दुश्मन के राडार भी आसानी से कैच नहीं सकते थे !
लेकिन क्या आप जानते हैं कि नाजियों के द्वारा दूसरे विश्व युद्द के दौरान विकसित विमान ‘होर्टन हो 229’ आज के आधुनिक विमान टेक्नॉलोजी से कहीं आगे थी ! उसके एयरोडायनमिक्स को समझना इतना आसान नहीं था और इस पर नासा के वैज्ञानिक आजतक लगातार कार्य कर रहे हैं !
इसके निर्माण का कार्य 1940 में शुरू हुआ था ! इसमें कोई आवाज, कम्पन या इसको उड़ने के लिये किसी रनवे की जरुरत नहीं थी ! यह रावण के पुष्पक विमान की तरह ही एक अति आधुनिक प्राकृतिक ऊर्जा से चलने वाला विमान था !