बहुत कम लोग यह जानते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास खानदानी कवि थे ! इनके बाबा का नाम पं० सच्चिदानंद शुक्ल था ! जो अपने क्षेत्र के मशहूर कथावाचक एवं प्रसिद्ध भजन गायक भी थे ! वह अपने कथावाचन के लिए समय-समय पर विभिन्न तरह के भजन का निर्माण किया करते थे और अपनी संगीत मंडली के साथ आस-पास के गांव में जाकर कार्यक्रम भी आयोजित करते थे ! यही उनके जीवकोपार्जन का आधार था !
उनके के दो पुत्र थे ! पं० आत्माराम शुक्ल और पं० जीवाराम शुक्ल ! इन दोनों भाइयों की आपस में व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा के कारण बनती नहीं थी ! अतः अपने छोटे भाई जीवाराम शुक्ल के लिये बड़े भाई आत्माराम शुक्ल ने पैतृक निवास क्षेत्र को छोड़ने का निश्चय किया और वह जनपद बांदा के चित्रकूट तीर्थ में आकर रहने लगे ! वह ज्योतिष के प्रकांड ज्ञाता थे !
क्योंकि दो वेदों का उन्हें श्रेष्ठ ज्ञान भी था ! अत: लोग उन्हें आत्माराम शुक्ल की जगह आत्माराम दुबे कहने लगे ! धीरे धीरे उनके ज्ञान के प्रभाव के कारण उनका प्रभाव समस्त बुंदेलखंड क्षेत्र में फैलने लगा ! इसी बीच उनका विवाह हुलसी देवी नामक महिला से हो गया और वह चित्रकूट के निकट राजापुर नामक स्थान पर स्थाई रूप से रहने लगे ! इसी बीच उनके एक पुत्र का जन्म हुआ ! जिसने जन्म लेते ही “राम राम” बोला ! अत: उस बालक का नाम राम बोले हो गया ! यही राम बोले आगे चलकर गोस्वामी तुलसीदास के नाम से पूरे विश्व में विख्यात हुये ! जिन्होंने श्रीरामचरितमानस महाग्रंथ की रचना की थी !
दूसरी तरफ पं० आत्माराम शुक्ल के छोटे भाई पं० जीवाराम शुक्ल के एक पुत्र संतान हुई ! जिसका नाम नंददास जी था ! नंददास जी तुलसीदास जी के सगे चचेरे भाई थे ! नंददास जी ने भी तुलसीदास की तरह कई रचनायें लिखीं !
जिनमें रसमंजरी, अनेकार्थमंजरी, भागवत्-दशम स्कंध, श्याम सगाई, गोवर्द्धन लीला, सुदामा चरित, विरहमंजरी, रूप मंजरी, रुक्मिणी मंगल, रासपंचाध्यायी, भँवर गीत, सिद्धांत पंचाध्यायी, नंददास पदावली आदि प्रमुख हैं !
नंददास शुक्ल भक्तिकाल में पुष्टि मार्गीय अष्टछाप के महान कवि थे ! जो अपने मूल जनपद कासगंज उत्तर प्रदेश में सोरों शूकरक्षेत्र श्यामपुर गाँव में निवास करते थे ! वह भरद्वाज गोत्र के सनाढ्य ब्राह्मण थे ! इनके पिता पं० जीवाराम शुक्ल व माता चंपा देवी के गर्भ से इनका जन्म सम्वत्- 1572 विक्रमी में हुआ था !
रामचरितमानस तुलसीदास जी का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ रहा है ! उन्होंने अपनी रचनाओं के सम्बन्ध में कहीं कोई उल्लेख नहीं किया है, इसलिए प्रामाणिक रचनाओं के सम्बन्ध में अन्त:साक्ष्य का अभाव दिखायी देता है ! नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ इस प्रकार हैं !
रामचरितमानस, रामललानहछू, वैराग्य-संदीपनी, बरवै रामायण, पार्वती-मंगल, जानकी-मंगल, रामाज्ञाप्रश्न, दोहावली, कवितावली, गीतावली, श्रीकृष्ण-गीतावली, विनय-पत्रिका, सतसई, छंदावली रामायण, कुंडलिया रामायण, राम शलाक, संकट मोचन, करखा रामायण, रोला रामायण, झूलना, छप्पय रामायण, कवित्त रामायण, कलिधर्माधर्म निरूपण, हनुमान चालीसा, हनुमानाष्टक आदि लगभग 40 ग्रन्थ हैं !
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित राम चरित मानस की लोकप्रियता अद्वितीय है, परंतु इस ग्रंथ के किसी न किसी पहलू को लेकर बराबर विवाद भी उठते रहते हैं ! रामचरितमानस की भाषा के बारे में विद्वान एकमत नहीं हैं ! कोई इसे अवधी मानता है तो कोई भोजपुरी ! कुछ लोक मानस की भाषा अवधी और भोजपुरी की मिलीजुली भाषा मानते हैं ! मानस की भाषा बुंदेली मानने वालों की संख्या भी कम नहीं है !
राम चरित मानस में संस्कृत, फारसी और उर्दू के शब्दों की भरमार है ! प्रकाशन विभाग द्वारा सन 1978 में प्रकाशित पुस्तक ‘रामायाण, महाभारत एंड भागवत राइटर्स’ के पृष्ठ 110 पर मदन गोपाल ने रामचरितमानस की भाषा में के बारे में लिखते हुए कहा कि तुलसीदास अवधी और ब्रज भाषा में बराबर निष्णात थे ! उन्होंने लगभग 90,000 संस्कृत शब्दों को गाँवों में प्रचलित किया, जबकि 40,000 देसी शब्दों को को पढ़े-लिखे लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया !
तुलसीदास ने अवधी और ब्रज भाषा के मिले-जुले स्वरूप को प्रचलित किया ! इसके साथ ही उन्होंने फारसी और अन्य भाषाओं के हजारो शब्दों का प्रयोग किया ! तुलसीदास ने संज्ञाओं का प्रयोग क्रिया के रूप में किया तथा क्रियाओं का प्रयोग संज्ञा के रूप में ! इस प्रकार के प्रयोगों के उदाहरण बिरले ही मिलते हैं ! तुलसीदास ने भाषा को नया स्वरूप दिया !
इसके अतिरिक्त इनकी पत्नी रत्नावली भी बहुत बड़ी विदुषी लेखिका थी उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथ रत्नावली को उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी साहित्य संस्थान लखनऊ ने प्रकाशित किया है !
कहा जाता है कि रत्नावली के मृत्यु के समय उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास के दर्शन की इच्छा रखी और जब गोस्वामी तुलसीदास उनसे मिलने गए तो उनको देखते ही उन्होंने शरीर छोड़ दिया !
इस तरह गोस्वामी तुलसीदास खानदानी रूप से एक चिंतनशील, कथावाचक, भजन निर्माता, एवं विभिन्न ग्रंथों का निर्माण करने वाले श्रेष्ठ ब्राह्मण खानदान के पुत्र थे !
शायद यही वजह है कि गोस्वामी तुलसीदास का शब्दकोश जितना विस्तृत है उतना विश्व में किसी अन्य लेखक का शब्दकोश नहीं है ! अकेले गोस्वामी तुलसीदास ने अपने साहित्य में लगभग तरह के शब्दों का प्रयोग किया है !
यह उनके महान लेखक होने का सूचक है !!