ध्यान प्रक्रिया हर देश काल परिस्थिती में अलग अलग समय पर अलग अलग रहीं हैं ! आधुनिक मनुष्य का मन मस्तिष्क प्राचीन काल से अलग है ! आज का बदला हुआ चित्त एक बहुत ही नयी घटना है !
कोई भी परंपरागत विधि अपने वर्तमान रूप में प्रयुक्त नहीं हो सकती क्योंकि आधुनिक मनुष्य पहले कभी था ही नहीं, अत: सभी पुरातन विधियां आज की परिस्थियों में असंगत हैं !
उदाहरण के तौर पर, शरीर इतना बदल गया है, इतना व्यसनी हो चुका है कि कोई प्राचीन विधि अब के मनुष्य के लिये सहायक नहीं हो पा रही है ! आज वातावरण पूरी तरह से बनावटी हो चुका है !
हवा, पानी, समाज, रहन-सहन कुछ भी सहज नहीं है ! आप बनावटीपन में ही जन्मते हैं और उसी में बड़े होकर मर जाते हैं ! इसीलिये आज कल ध्यान की प्राचीन विधियां वर्तमान मनुष्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं ! क्योंकि मनुष्य के मन का गुणधर्म अब बदल चुका है !
पतंजलि के युग में मनुष्य के व्यक्तित्व का केंद्र मस्तिष्क नहीं बल्कि नाभी के कम्पन से निकला हुआ विचार हुआ करता था ! जो सीधा सीधा प्रकृति के सहयोग से सामने वाले व्यक्ति के विचारों को बदलने का सामर्थ रखता था ! किन्तु अब ऐसा नहीं है !
उस समय विचार का चक्र मस्तिष्क से नहीं बल्कि नाभि अर्थात मणिपुर चक्र से संचालित होता था ! जो ईश्वर द्वारा जन्म से पूर्व ही दिया गया विचार केंद्र है ! अब यह तल नाभि से दूर आधुनिक मस्तिष्क हो गया है ! इसीलिये आज सविधायें और तकनीकी विकसित हो जाने के बाद भी अब किसी का प्रभाव किसी दूसरे के मन को नहीं बदल पा रहा है !
अब आधुनिक जीवन शैली में प्रतिष्पर्धा के कारण मस्तिष्क में उत्पन्न अत्यधिक विचार ही ध्यान में मनुष्य की परेशानी का कारण हैं ! जबकि ध्यान के लिये मस्तिष्क को विचारों से पूरी तरह खाली होना चाहिये ! तभी व्यक्ति का विचार और मानसिक शक्तियों पर पूरा नियंत्रण होता है !
हमारे अत्यधिक तीव्र गति से चलते हुए विचार ही हमारी मानसिक शक्तियों को कमजोर करते हैं ! जिस वजह से हम संकल्प लेने के बाद भी न तो प्रकृति का सहयोग ही प्राप्त कर पाते हैं और न ही अपने पुरुषार्थ से उस संकल्प को पूरा कर पाते हैं !
इसमें किसी और का दोष नहीं है ! देश, काल, परिस्थिति, आधुनिकता, तकनीकी, विज्ञान, परिवेश, राजनीति, अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था आदि बहुत से पहलू इसके लिये जिम्मेदार हैं ! जो इस समय मनुष्य के ध्यान साधना में अवरोधक बन रहे हैं !
वैसे ध्यान भी कोई एक-दो दिन में सीखे जाने का विषय नहीं है ! इसके लिए जन्म जन्मांतर के संस्कारों की ऊर्जा कार्य करती है !
इसलिए आज आवश्यक हो गया है कि प्राचीन ध्यान पद्धतियों के स्थान पर वर्तमान समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आधुनिक ध्यान पद्धतियां विकसित की जाये ! जो मनुष्य के जन्म जन्मांतर के संस्कारों के सापेक्ष हो !
तभी ध्यान से मनुष्य का कल्याण होगा अन्यथा ध्यान के नाम पर समय बर्बाद करने के अतिरिक्त और कुछ भी हाथ नहीं लगेगा ! इस संदर्भ में सनातन ज्ञान पीठ ने ब्रह्मास्मि क्रिया योग पर बहुत से व्यावहारिक शोध किये हैं और उसके आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिलते हैं !
मैं आपसे आशा करता हूं कि आप भी ब्रह्मास्मि क्रिया योग पद्धति से ध्यान साधना करिये और अपने जीवन को सफल बनाइये !!