अब आज के समय का विज्ञान भी मानता है कि आधुनिक मानव यानि होमो सेपियंस यानि हम लोग इस धरती पर सबसे पहले अफ्रीका क्षेत्र में 3,00,000 साल पहले दिखाई दिये थे ! जिन्हें हम प्रकृति प्रिय शैव संस्कृति का अनुयायी कह सकते हैं !
लेकिन इनसे भी 1,00,000 साल पहले से एक अन्य मानव प्रजाति अफ्रीका से बाहर विचरण कर रही थी ! यह प्रजाति थी नियंडरथल मानवों की ! नियंडरथल मानव 4,00,000 लाख साल पहले इस धरती पर अन्य ग्रह से आये थे और यूरोप व एशिया के अधिकतर भूभाग में फैले हुए थे ! यह ब्रह्म संस्कृति के दूसरे ग्रह से आये हुये लोग थे !
लगभग 70,000 साल पहले आधुनिक मानवों ने अफ्रीका से बाहर निकल कर एशिया की धरती पर कदम रखा था ! और भारत के उत्तरी क्षेत्र हिमालय क्षेत्र में बस गये और इन्होंने हिमालय के मूल निवासी और प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता के स्वामी भगवान शिव का अनुकरण किया !
किंतु इन्हीं में से कुछ होमो सेपियंस मनुष्य ने नियंडरथल मानव से संबंध स्थापित किया और एक तीसरी नस्ल पैदा हुई ! जिसे हम विष्णु को मनाने वाले वैष्णव कह सकते हैं ! जिन्हें ब्रह्म संस्कृत के लोगों ने वर्णसंकर मानते हुये अपने क्षेत्र अर्थात सरस्वती नदी के क्षेत्र से बाहर निकाल दिया और यह लोग कालांतर में कैस्पियन सागर के पास जाकर बस गये !
और काल के प्रवाह से आज से 3,00,00 लाख साल पहले नियंडरथल मानव प्रजाति जो ब्रह्म संस्कृति की अनुयायी थी वह अपने पर्यावरणीय कारणों से विलुप्त हो गयी !
किंतु ब्रह्म संस्कृति की वर्णसंकर औलादे जो अब अपने को विष्णु का अनुयायी अर्थात वैष्णव मानती थी ! उन्होंने अपना साम्राज्य विस्तार आरंभ किया और विश्व के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करना शुरू कर दिया ! जिन पर पहले से ही शैवों का नियंत्रण था !
और इन वैष्णव लोगों ने स्वयं को स्वत: ही देवता घोषित करते हुये, प्राकृतिक के पंच तत्वों के नाम पर अपने राजाओं के नाम रखते हुये स्वयं को उनका स्वामी घोषित करना शुरू कर दिया और शैवों से पंचतत्व ऊर्जा के प्रयोग पर “कर वसूलने लगे ! जैसे सूर्य अर्थात अग्नि का स्वामी, वायु अर्थात वरुण, इंद्र अर्थात जल का स्वामी, प्रजापति अर्थात भूस्वामी आदि आदि ! इन्हीं स्वयंभू देवताओं का यश गान वेदों में मिलता है !
इसी वजह से इन स्वत: को प्रकृति का स्वामी घोषित कर देने के कारण इन स्वयंभू देवताओं से शैवों का हजारों साल तक प्राकृतिक संसाधनों के नियंत्रण को लेकर युद्ध चलता रहा है !
जिस युद्ध में शैवों को दिशा देने वाले आचार्य शुक्राचार्य थे और देवताओं को दिशा देने वाले आचार्य बृहस्पति थे !
जिन युद्धों की घटनाओं से हमारे धर्म ग्रंथ लिखे पड़े हैं ! जिनमें करोड़ों लोगों की हत्या की घटनाएं लिखी हुई हैं ! और ताजुब की बात यह है कि इन्हीं हत्यारों के गुणगान में लिखे धर्म ग्रंथों को पढ़ कर हम हिंदू शांति और मोक्ष की कामना करते हैं !
इसीलिये इन धर्म ग्रंथों को पढ़ने के बाद व्यक्ति में क्षद्म हिंसा और अहंकार तो पैदा होता है, लेकिन शांति और मोक्ष की उसे प्राप्त नहीं होता है