वैष्णव संस्कृति के पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों को सदैव से युद्ध का कारण बतलाया गया है !
फिर चाहे वह राम रावण का युद्ध हो या महाभारत का ! दोनों की वजह अहंकारी पुरुष ने माता सीता और द्रोपती को बतलाया है !
जबकि सत्य यह है कि इतिहास में कोई भी युद्ध कभी भी किसी स्त्री के कारण ही हुए, बल्कि हर युद्ध पुरुष की वासना, षड्यंत्र और साम्राज्यवादी अहंकार के कारण हुए हैं !
उदाहरण के लिए जब विश्वामित्र रावण की नानी ताड़का की हत्या के लिए राम को दशरथ से मांग कर अपने साथ ले गए थे ! तब उस समय तो सीता का विवाह भी राम के साथ नहीं हुआ था ! जबकि यहीं से राम रावण के युद्ध की नीव पड़ गई थी !
और विश्वामित्र और वशिष्ठ का विश्वविख्यात युद्ध विशुद्ध विश्वामित्र के अहंकार का परिणाम था ! यहां तो किसी भी स्त्री की कोई भूमिका नहीं थी !
इसी तरह हरिश्चंद्र का अवध साम्राज्य से निकाला जाना भी विशुद्ध विश्वामित्र के अहंकार का परिणाम था ! यहां तो किसी स्त्री की कोई भूमिका नहीं थी फिर भी उन्हें बनारस के मरघट पर डोम राज की नौकरी करने के लिए बाध्य होना पड़ा ! कालांतर में उस घाट का नाम ही हरिश्चंद्र घाट हो गया !
समुद्र मंथन के देवासुर संग्राम में भी किसी स्त्री की कोई भूमिका नहीं थी ! और न ही हिरण्यकश्यप, हिरण्याक्ष और राजा बलि ! जिनके लिए भगवान विष्णु को 4 अवतार लेने पड़े (कश्यप, वराह, नरसिंह और वामन अवतार) इनमें से किसी भी युद्ध की वजह कोई स्त्री नहीं थी !
इसी तरह राम रावण युद्ध के पूर्व लक्ष्मण के उग्र स्वभाव के कारण लक्ष्मण ने रावण की बहन सुपनखा के नाक कान काट लिए थे ! वह घटना इस युद्ध का मुख्य कारण था ! न की माता सीता ! माता सीता तो बल्कि अहंकारी देवर लक्ष्मण के अहंकार में व्यर्थ ही परेशान हो गई थी और जीवन भर उन्हें अपमान का सामना करना पड़ा !
ठीक इसी तरह महाभारत युद्ध का भी मूल कारण भीम का अहंकारी स्वभाव था ! जिसने दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कहकर संबोधित किया था ! द्रोपती तो उस घटना के समय वहां थी ही नहीं ! ऐसा महाभारत का ग्रंथ बतलाता है !
और इस घटना के बाद युधिष्ठिर ही अपने अहंकार के कारण जुआ खेलने के लिए दुर्योधन के बुलाने पर गए थे ! द्रोपती तो अनावश्यक ही भीम और युधिष्ठिर के अहंकार के कारण अपमानित हुई !
इसी तरह भारत पर आक्रमण करने वाले चंगेज, शक, हुण, ग्रीक, मुगल, अंग्रेज आदि किसी भी आक्रांता के आक्रमण की वजह कोई स्त्री नहीं रही है ! बल्कि पुरुषों का अहंकार और साम्राज्यवादी सोच ही हर युद्ध की वजह रही है !
इसलिए यह कहना एकदम गलत है कि भारत के इतिहास में स्त्रियां ही युद्ध का कारण रहीं है, बल्कि सच तो यह है कि युद्ध का मुख्य कारण पुरुष का अहंकार, वासना और साम्राज्यवाद की इच्छा है !
अपनी इसी कमी को छुपाने के लिए पुरुष प्रधान वैष्णव समाज में युद्ध का सारा आरोप कथा कहानियों में स्त्रियों के ऊपर डाल दिया ! जिससे कि उन्हें समाज सम्मान की निगाह से देखें ! जोकि नितांत गलत है ! इसलिये आज के विकसित समाज में अब वैष्णव ग्रंथों में लिखे स्त्री विरोधी इतिहास पर पुनर्विचार की आवश्यकता है !!