प्रत्येक व्यक्ति के जन्म के समय अलग-अलग ग्रहीय ऊर्जायें पृथ्वी पर रहती हैं, जिनके प्रभाव से व्यक्ति जीवन भर प्रभावित होता है | इन ग्रहीय ऊर्जाओं का असंतुलन व्यक्ति के ओरा को क्षति पहुँचाते रहते हैं , जिससे व्यक्ति को आर्थिक,शारीरिक तथा दैविक कष्ट प्राप्त होते हैं | योग्य गुरु व्यक्ति के ओरा के माध्यम से यह जान लेता है कि किस व्यक्ति के शरीर में किस ग्रहीय ऊर्जा का असंतुलन हो रहा है और उस व्यक्ति को उस ग्रहीय ऊर्जा के संतुलन के लिये जो मंत्र देता है वह गुरु मंत्र होता हैं |
हमारे यहाँ गायत्री मंत्र को सनातन धर्म में गुरु मंत्र कहा गया है। आज भी देश भर में इसका प्रचार है और प्रायः सभी प्राँतों के पंडित यज्ञोपवीत धारण कराते समय शिष्य को इस मंत्र का उपदेश देते हैं। जो कि गलत है जब से हमारे देश में पुत्र-परम्परा अथवा शिष्य-परम्परा से लोग गुरु बनने का दावा करने लगे तभी से उनका आदरमान घटने लग गया और धीरे-धीरे गुरु कर्तव्य प्रायः नष्ट हो गया है । इसके फलस्वरूप समाज में वास्तविक ज्ञान विज्ञान का अभाव हो गया है ।
किन्तु फिर भी मंत्र का प्रकार गुरु ही तय करता है कि कौन सा मंत्र किस व्यक्ति पर जल्दी फलीभूत होगा, यह गुरु ही जनता है |
मंत्र सिद्धि प्राप्त करने के लिये भी कुछ महत्वपूर्ण नियम भी हैं जैसे :-* भूमि पर शयन * ब्रम्हचर्य का पालन* मौन * गुरु सेवा* त्रिकाल संध्या * पाप कर्मो का पूर्ण त्याग * नित्य पूजन * नित्य दान* इष्ट का पूजन* इष्ट और गुरु में विश्वास* जप में पूर्ण निष्ठा आदि |
प्रायः गुरु मंत्र दिखने में छोटे होते है परन्तु उसका प्रभाव बहुत बड़ा होता है | हमारे पूर्वज ऋषि मुनियो ने इन्ही मंत्र के बल से ही बहुत सी सिद्धिया और चिरस्थायी ख्याति प्राप्त की है |
गुरु मंत्र यदि गुरुमुख से प्राप्त हो तो इसे सफलता का वरदान मानिये, मंत्र देने के साथ ही साथ गुरु से उसके उतार चढ़ाव और लय का भी ज्ञान हो जाता है।
इस तरह अगर आप सच्चे गुरु द्वारा मंत्र के जप व साधन का ठीक मार्ग जान सकें तो आप भी प्राचीन काल के धर्मात्मा लोगों के समान संसार में सुखपूर्वक रहते हुए भी परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं।
हमारे देश के वैदिक काल के ऋषि-मुनि अधिकाँश में गृहस्थी ही थे और लौकिक कार्यों करते हुये भी वे ‘सत्य’ और ‘साधना’ में संलग्न रहते थे। अगर अब भी हमारे गुरुओं और शिष्यों द्वारा उस वेद-विज्ञान सम्मत विधि-विधान और अनुशासन का पालन करते हुये जीवन निर्वाह करें तो इस मायामय संसार और भौतिक पदार्थों का यथावत भोग करते हुए आनन्दमय, कल्याणकारी जीवन को व्यतीत करते हुये ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं इसके लिये शीघ्र ही किसी तत्व ज्ञानी गुरु की तलाश कर उससे गुरु मंत्र प्राप्त कीजिये ।