जानिए दैनिक यज्ञ के लाभ क्या क्या है !

यज्ञों की भौतिक और आध्यात्मिक महत्ता असाधारण है ! भौतिक या आध्यात्मिक जिस क्षेत्र पर भी दृष्टि डालें उसी में दैनिक यज्ञ की महत्वपूर्ण उपयोगिता दृष्टिगोचर होती है ! वेद में ज्ञान, कर्म, उपासना तीन विषय हैं ! कर्म का अभिप्राय-कर्मकाण्ड से है, कर्मकाण्ड दैनिक यज्ञ को कहते हैं ! वेदों का लगभग एक तिहाई मंत्र भाग यज्ञों से संबंध रखता है ! यों तो सभी वेदमंत्र ऐसे हैं जिनकी शक्ति को प्रस्फुरित करने के लिए उनका उच्चारण करते हुए दैनिक यज्ञ करने की आवश्यकता होती है !

दैनिक यज्ञ में जो थोड़ा-सा समय और पैसा खर्च होता है उसकी अपेक्षा अनेकों गुना लाभ प्राप्त होता है ! खेती में थोड़ा-सा बीज बोने पर अनेक गुनी फसल पैदा होती है ! दैनिक यज्ञ में भी आकाश रूपी भूमि में, दैनिक यज्ञ सामग्री रूपी बीज बोने की खेती की जाती है और चूंकि पृथ्वी से आकाश तत्व की शक्ति हजारों गुनी अधिक मानी गई है, उसी अनुमान से इस यज्ञीय खेती की फसल में हजारों गुना अधिक लाभ होता है !

(1) मनुष्य शरीर से निरन्तर निकलती रहने वाली गंदगी के कारण जो वायु मण्डल दूषित होता रहता है, उसकी शुद्धि दैनिक यज्ञ की सुगन्ध से होती है ! हम मनुष्य शरीर धारण करके जितनी दुर्गन्ध पैदा करते हैं उतनी ही सुगन्ध भी पैदा करें तो सार्वजनिक वायु-तत्व को दूषित करने के अपराध से छुटकारा प्राप्त करते हैं !

(2) दैनिक यज्ञ धूम्र आकाश में जाकर बादलों में मिलता है ! उससे वर्षा का अभाव दूर होता है ! साथ ही दैनिक यज्ञ धूम्र की शक्ति के कारण बादलों में प्राणशक्ति उसी प्रकार भर जाती है जिस प्रकार इन्जेक्शन की पिचकारी से थोड़ी-सी दवा भी शरीर में प्रवेश करादी जाय तो उसका प्रभाव सारे शरीर पर पड़ता है ! दैनिक यज्ञ कुण्डों को इन्जेक्शन की पिचकारी, मन्त्रों को सुई और आहुतियों को दवा मान कर आकाश में जो इन्जेक्शन लगाया जाता है उसका फल प्राणप्रद वर्षा के रूप में प्रकट होता है ! ऐसी वर्षा से अन्न, घास-पात, वनस्पतियां, जीव जन्तु सभी बलवान, परिपुष्ट एवं शक्ति सम्पन्न बनते हैं !

(3) दैनिक यज्ञ के द्वारा जो शक्तिशाली तत्व वायु मण्डल में फैलाये जाते हैं उनसे हवा में घूमते हुए असंख्यों रोग-कीटाणु सहज ही नष्ट हो जाते हैं ! डी.डी.टी., फिनायल आदि छिड़कने, बीमारियों से बचाव करने की दवाएं या सुइयां लेने से भी कहीं अधिक कारगर उपाय दैनिक यज्ञ करना है ! साधारण रोगों एवं महामारियों से बचने का दैनिक यज्ञ एक सामूहिक उपाय है ! दवाओं में सीमित स्थान एवं सीमित व्यक्तियों को ही बीमारियों से बचाने की शक्ति है, पर दैनिक यज्ञ की वायु तो सर्वत्र ही पहुंचती है और प्रयत्न न करने वाले प्राणियों की भी सुरक्षा करती है ! मनुष्यों की ही नहीं, पशु पक्षियों, कीटाणुओं एवं वृक्ष वनस्पतियों के आरोग्य की भी दैनिक यज्ञ से रक्षा होती है !

(4) दैनिक यज्ञ द्वारा प्रथक-प्रथक रोगों की भी चिकित्सा हो सकती है ! दैनिक यज्ञ तत्व का ठीक प्रकार उपयोग करके अन्य चिकित्सा पद्धतियों के मुकाबले में अधिक मात्रा में और अधिक शीघ्रतापूर्वक लाभ प्राप्त किया जा सकता है !

(5) यज्ञ द्वारा विश्वव्यापी पंच तत्वों की, तन्मात्रा की, तथा दिव्य शक्तियों की परिपुष्टि होती है ! इसके क्षीण हो जाने पर दुखदायी असुरता संसार में बढ़ जाती है और मनुष्यों को नाना प्रकार के त्रास सहने पड़ते हैं ! देवताओं का—सूक्ष्म जगत के उपयोगी देवतत्वों का भोजन दैनिक यज्ञ है ! जब उन्हें अपना आहार समुचित मात्रा में मिलता रहता है तो वे परिपुष्ट रहते हैं और असुरता को, दुख दारिद्र को दबाये रहते हैं ! इस रहस्यमय तथ्य को गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं श्रीमुख से उद्घाटन किया है !

(6) यज्ञ में जिन मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है उन की शक्ति असंख्यों गुनी अधिक होकर संसार में फैल जाती है, और उस शक्ति का लाभ सारे विश्व को प्राप्त होता है ! रेडियो ब्रॉडकास्ट करते समय वक्ता की वाणी को शक्तिशाली विद्युत धारा से शक्तिशाली बना देते हैं तो वह आवाज संसार भर में रेडियो यन्त्रों पर सुनी जाने योग्य हो जाती है ! मन्त्रोच्चारण के साथ यज्ञाग्नि की शक्ति बिजली की बैटरी, जनरेटर डायनेमो का काम करती है और मन्त्रशक्ति को प्रचण्ड करके सारे आकाश में फैला देती है ! गायत्री मंत्र की सद्बुद्धि शक्ति को यज्ञों के द्वारा जब आकाश में फैलाया जाता है तो उसका प्रभाव समस्त प्राणियों पर पड़ता है और वे सद्बुद्धि से, सद्भावना से, सत्प्रवृत्तियों से अनुप्राणित होते हैं ! अगणित व्याख्यानों और अनेकों पुस्तकों से भी शुद्ध बुद्धि-सन्मार्गगामी बुद्धि की जितनी उत्पत्ति हो सकती है उससे असंख्यों गुनी सद्बुद्धि यज्ञों से उपजती है और सन्मार्गगामी, सद्बुद्धि से अनुप्राणित मनुष्य संसार में सुख शांति की स्थापना का प्रमुख आधार बनते हैं !

(7) दैनिक यज्ञ की ऊष्मा मनुष्य के अन्तःकरण पर देवत्व की छाप डालती है ! जहां दैनिक यज्ञ होते हैं वह भूमि एवं प्रदेश सुसंस्कारों की छाप अपने अन्दर धारण कर लेता है और वहां जाने वालों पर भी दीर्घ काल तक प्रभाव डालती रहती है ! प्राचीन काल में तीर्थ वहीं बने हैं जहां बड़े-बड़े दैनिक यज्ञ हुए थे ! जिन घरों में, जिन स्थानों में दैनिक यज्ञ होते हैं वह भी एक प्रकार का तीर्थ बन जाता है और वहां जिनका आगमन रहता है उनकी मनोभूमि उच्च, सुविकसित एवं सुसंस्कृत बनती है ! महिलाएं, छोटे बालक एवं गर्भस्थ बालक विशेष रूप से दैनिक यज्ञ शक्ति से अनुप्राणित होते हैं ! उन्हें सुसंस्कारित बनाने के लिए यज्ञीय वातावरण की समीपता बड़ी उपयोगी सिद्ध होती है !

(8) कुबुद्धि, कुविचार, दुर्गुण एवं दुष्कर्मों से व्यक्तियों की मनोभूमि में दैनिक यज्ञ से भारी सुधार होता है ! इसलिए दैनिक यज्ञ को पाप नाशक कहा गया है ! यज्ञीय प्रभाव से सुसंस्कृत हुई विवेकपूर्ण मनोभूमि का प्रतिफल जीवन के प्रत्येक क्षण को स्वर्गीय आनन्द से भर देता है, इसलिए यज्ञ को स्वर्ग देने वाला कहा गया है !

(9) यज्ञों की शोध की जाय तो प्राचीन काल की भांति दैनिक यज्ञ शक्ति से सम्पन्न अग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, सम्मोहनास्त्र, आदि अस्त्र शस्त्र, पुष्पक विमान जैसे यंत्र बन सकते हैं, अनेकों ऋद्धि सिद्धियों को उपलब्ध किया जा सकता है ! लोक लोकान्तरों की यात्रा की जा सकती है ! प्रखर बुद्धि, सुसन्तति, निरोगता एवं सम्पन्नता प्राप्त की जा सकती है ! प्राचीन काल की भांति यज्ञीय लाभ पुनः प्राप्त हों इसकी शोध के लिए यह आवश्यक है कि जनसाधारण का ध्यान इधर आकर्षित हो और साधारण यज्ञ आयोजनों का प्रचार बढ़े !

(10) यज्ञीय धर्म प्रक्रियाओं में भाग लेने से आत्मा पर चढ़े हुए मल विक्षेप शुद्ध होते हैं ! फलस्वरूप तेजी से उसमें ईश्वरीय प्रकाश आने लगता है ! दैनिक यज्ञ से आत्मा में ब्राह्मण तत्व, ऋषितत्व की वृद्धि दिन-दिन होती है और आत्मा को परमात्मा से मिलाने का परम-लक्ष बहुत सरल हो जाता है ! आत्मा और परमात्मा को जोड़ देने का, बांध देने का कार्य यज्ञाग्नि द्वारा ऐसे ही होता है जैसे लोहे के दो टूटे हुए टुकड़ों को वैल्डिंग की अग्नि जोड़ देती है ! ब्राह्मणत्व दैनिक यज्ञ के द्वारा ही प्राप्त होता है ! इसीलिए ब्राह्मण कर्तव्य में दैनिक यज्ञ, विद्या, दान—इन तीन की प्रधानता है ! ब्राह्मणत्व प्राप्त करने के लिये एक तिहाई जीवन दैनिक यज्ञ कर्म के लिये अर्पित करना पड़ता है ! लोगों के अन्तःकरणों में अंत्यज वृत्ति घटे और ब्राह्मण वृत्ति बढ़े इसके लिये वातावरण में यज्ञीय प्रभाव शक्ति भरना आवश्यक है !

(11) दैनिक यज्ञ त्यागमय जीवन के आदर्श का प्रतीक है ! इदन्न मम—(यह मेरा नहीं सम्पूर्ण समाज का है) इन भावनाओं के विकास से ही हमारा सनातन आध्यात्मिक समाजवाद जीवित रह सकता है ! अपनी प्रिय वस्तुएं घृत, मिष्ठान्न, मेवा औषधियां, आदि दैनिक यज्ञ करके उन्हें सारे समाज के लिये बांट देकर हम उसी प्राचीन आदर्श को मनोभूमि में प्रतिष्ठापित करते हैं ! मनुष्य अपनी योग्यता, शक्ति, विद्या, सम्पत्ति, प्रतिष्ठा, प्रभाव पद आदि का उपयोग अपने सुख के लिये कम से कम करके समाज को उसका अधिकाधिक लाभ दे यही आदर्श दैनिक यज्ञ में सन्निहित है ! दैनिक यज्ञ की प्रतीक पूजा से उन भावनाओं को सारे समाज को हृदयङ्गम कराया जाता है !

(12) अपनी थोड़ी सी वस्तु को सूक्ष्म वायु रूप बना कर उन्हें समस्त जड़ चेतन प्राणियों को बिना किसी अपने पराये, मित्र शत्रु का भेद किये सांस द्वारा इस प्रकार गुप्त दान के रूप में खिला देना कि उन्हें पता भी न चले कि किस दानी ने हमें इतना पौष्टिक तत्व खिला दिया—सचमुच एक श्रेष्ठ ब्रह्मभोज का पुण्य प्राप्त करना है ! कम खर्च में बहुत अधिक पुण्य प्राप्त करने का दैनिक यज्ञ एक सर्वोत्तम उपाय है !

(13) दैनिक यज्ञ सामूहिकता का प्रतीक है ! अन्य उपासनाएं या धर्म प्रक्रियाएं ऐसी हैं जो अकेला कर या करा सकता है पर दैनिक यज्ञ ऐसा कार्य है जिसमें अधिक जनता के सहयोग की जरूरत है ! होली आदि बड़े दैनिक यज्ञ तो सदा सामूहिक ही होते हैं ! दैनिक यज्ञ आयोजनों में सामूहिकता, सहकारिता और एकता की भावनाएं विकसित होती हैं !

(14) आपत्ति काल में, अनिष्ट निवारण में, कुसमय में, रक्षात्मक शांति शक्ति के रूप में यज्ञों का बड़ा महत्व है ! वर्तमान काल में एटम युद्ध जैसी सत्यानाशी आसुरी संहार लीलाओं की सम्भावनाएं बढ़ती जा रही हैं ! सन् 62 में एक राशि पर 8 ग्रह आने का कुयोग भी अशुभ सूचक है ! ऐसे कुसमय आने पर शांति आयोजनों के रूप में यज्ञानुष्ठान को शास्त्रकारों ने सर्वोत्तम उपाय माना है ! अरबों मनुष्यों और असंख्य जीव जन्तुओं की शांति और सुरक्षा के लिये दैनिक यज्ञ आयोजनों की श्रृंखला बढ़ाने की आवश्यकता है !

(15) हिंदू जाति का प्रत्येक शुभ कार्य, प्रत्येक पर्व, त्यौहार संस्कार दैनिक यज्ञ के साथ सम्पन्न होता है ! दैनिक यज्ञ भारतीय संस्कृति का पिता है ! दैनिक यज्ञ भारत की सर्वमान्य एवं प्राचीनतम वैदिक उपासना है ! बीच के अंधकार युग में अनेक मतमतान्तर उपज पड़े और विघटनात्मक भारी मतभेद खड़े हो जाने से हिंदू जाति विशृंखलित हो गई ! धार्मिक एकता एवं भावनात्मक एकता को लाने के लिये दैनिक यज्ञ आयोजनों की सर्वमान्य साधना का आश्रय लेना सब प्रकार दूरदर्शितापूर्ण है !

(16) दैनिक यज्ञ सभी अच्छे हैं पर प्रथक-प्रथक यज्ञों के उद्देश्य और परिणाम भिन्न-भिन्न हैं ! वर्षा का अभाव दूर करने के लिये विष्णुदैनिक यज्ञ, विलासिता त्यागने और भक्ति भावना बढ़ाने के लिये रुद्रदैनिक यज्ञ, बीमारियों को रोकने के लिये मृत्युञ्जय दैनिक यज्ञ और लड़ाई के समय जनता में जोश भरने के लिये चण्डीदैनिक यज्ञ कराये जाते हैं ! पर जब मनुष्यों को कुमार्गगामिता से बचाकर सन्मार्ग पर लाने का, विश्वव्यापी अशुभ को रोकने का प्रयोजन हो तो गायत्री दैनिक यज्ञ ही एकमात्र अवलम्बन रह जाता है ! आज की परिस्थितियों में गायत्री दैनिक यज्ञ से बढ़कर अधिक उपयुक्त अचूक एवं रामबाण और कोई धर्मानुष्ठान हो नहीं सकता है !

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योगेश कुमार मिश्र 

ज्योतिषरत्न,इतिहासकार,संवैधानिक शोधकर्ता

एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)

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