आखिर कितने लोग यह जानते हैं कि संगीत प्रेमी दयालू कंस अपने पिता उग्रसेन और माता रानी पद्मावती की इकलौती पुरुष सन्तान था ! जो पिता के अमानवीय व्यवहार के कारण क्रूर कंस बन जाता है !
संगीत प्रेमी कंस को उसके पिता अपने महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए एक प्रभावी शासक बनाना चाहते थे ! इसके लिये एक बार वह कंस को शिकार खेलने ले गये ! वहां कंस को एक बकरे की आंख में तीर मारने को कहा ! कंस ने वैसा ही किया लेकिन बकरे की आंख से बहते खून को देखकर कंस का दिल पसीज गया और वह अपने पिता को आगे से शिकार खेलने जाने से मना कर दिया !
इस कारण कंस के पिता क्रोधित हो जाते हैं और कंस को फटकारना शुरू कर देते हैं ! जिससे कंस के मन में अपने पिता के लिये नफरत पैदा हो जाती है ! बचपन से हर रोज पिता की फटकार के कारण धीरे-धीरे कंस कठोर होता चला जाता है और युवा होते होते उसे पता चलता है कि उसके पिता अपनी राज सत्ता कंस को न देकर अपने मंत्री यदुवंशी शूर के पुत्र वासुदेव को दे रहे हैं ! जिससे पूर्व में ही अपनी छ: कन्याओं का विवाह कर चुके हैं !
तब कंस अपने साम्राज्य और अस्तित्व रक्षा के लिये ही अपने व्यक्तिगत विश्वासियों, बाहुक और प्रध्युम की सलाह पर अपने पिता को उनके ही राज महल में ही नजरबंद कर देता है और खुद को मथुरा का शासक घोषित कर देता है और अपने को सशक्त बनाने के लिये कंस ने मगध के सशक्त राजा जरासन्ध की दोनों बेटियों अस्थी और प्रिप्ती से विवाह कर लेता है !
क्योंकि वासुदेव अपनी चचेरी बहन कुन्ती के माध्यम से हस्तिनापुर के राजा पांडु के सहयोग से युद्ध के बहाने कंस के हत्या की योजना बनाते हैं ! जिसकी सूचना कंस को अपने शुभ चिन्तकों से मिल जाती है ! तब कंस क्योंकि वासुदेव की हत्या नहीं कर सकता था अन्यथा उसकी छ: बहनें विधवा हो जाती ! अत: कंस वासुदेव को उसकी 12 पत्नी और 42 बच्चों के साथ महामंत्री आवास में ही नजरबंद कर देता है !
वसुदेव यदुवंशी पिता शूर जो कंस के पिता उग्रसेन के मंत्री थे तथा माता मारिषा के पुत्र थे ! यह कृष्ण के पिता, कुंती के भाई और बाद में मथुरा के राजा कंस के पिता उग्रसेन के मंत्री हो गये थे ! इनका विवाह देवक उसकी पांच बहन और आहुक की छ: कन्याओं से हुआ था ! कुल इनके 12 पत्नी और 42 बच्चे थे ! जिनमें देवकी सर्वप्रमुख थी !
कालांतर में यह वृष्णियों (बैल पालक) के राजा व यादव राजकुमार थे ! वासुदेव और नन्द बाबा रिश्ते में चचेरे भाई थे ! वसुदेव के नाम पर ही कृष्ण को ‘वासुदेव’ (अर्थात् ‘वसुदेव के पुत्र’) कहते हैं ! वसुदेव ने स्यमंतपंचक क्षेत्र में अश्वमेध यज्ञ किया था ! कृष्ण की मृत्यु के उपरांत इस घटना से उद्विग्न होकर इन्होंने प्रभासक्षेत्र में देहत्याग किया था !
तब क्योंकि वासुदेव नन्द बाबा के चचेरे भाई थे ! अत: नन्द बाबा वासुदेव को समय समय पर छुड़ाने का प्रयास करते रहते थे ! जिसे कंस राजद्रोह मान कर कड़ाई से कार्यवाही करता था ! उसी को कंस के द्वारा प्रजा के ऊपर भी अत्याचार करना बतलाया गया है !
बाद में छलिया कृष्ण के बड़े होने पर कृष्ण प्रतिवर्ष मथुरा में होने वाले मल्ल युद्ध के आयोजन में भाग लेते हैं और कंस के रसोईये को मिला कर कंस को मल्ल युद्ध कार्यक्रम के पहले तीव्र नशा दिलवा देते हैं ! फिर भरे समाज में कंस को ललकारते हैं ! आवेग में कंस मल्ल युद्ध के लिये आता है किन्तु तीव्र नशे के कारण कंस ठीक से युद्ध नहीं कर पता है और उसी समय मौका देख कर कृष्ण कंस को मल्ल युद्ध में ही उसके मुख में जहर डाल कर उसकी हत्या कर देते हैं !
और अपने नाना, माता-पिता, भाई-बहन को नजरबंदी से मुक्त करावा देते हैं !
शेष कथा फिर कभी !