वैदिक काल में सरस्वती की बड़ी महिमा थी और इसे ‘परम पवित्र’ नदी माना जाता था, क्यों कि इसके तट के पास रह कर तथा इसी नदी के पानी का सेवन करते हुए ऋषियों ने वैदिक ज्ञान का विस्तार किया था । इसी कारण सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में भी पूजा जाना जाने लगा । ऋग्वेद के ‘नदी सूक्त’ में सरस्वती का इस प्रकार उल्लेख है ऋग्वेद में सरस्वती केवल ‘नदी देवी’ के रूप में वर्णित है ! इसकी वंदना तीन सम्पूर्ण तथा अनेक प्रकीर्ण मन्त्रों में की गई है !
किंतु ब्राह्मण ग्रथों में इसे वाणी की देवी या वाच् के रूप में देखा गया है ! उत्तर वैदिक काल में सरस्वती को मुख्यत:, वाणी के अतिरिक्त बुद्धि या विद्या की अधिष्ठात्री देवी भी माना गया है । ब्रह्म क्षेत्र की नदी होने के नाते इसकी ब्रह्मा की पत्नी के रूप में वंदना की गयी है ! ऋग्वेद में सरस्वती को “नदीतमा” की उपाधि दी गयी है । ऋग्वेद की शाखा 2.41.16 में इसे “सर्वश्रेष्ठ माँ, सर्वश्रेष्ठ नदी, सर्वश्रेष्ठ देवी” कह कर सम्बोधित किया गया है । यही प्रशंसा ऋग्वेद के अन्य छंदों 6.61,8.81,7.96 और 10.17 में भी की गयी है ।
ऋग्वेद के नदी सूक्त के एक मंत्र 10.75 में सरस्वती नदी को ‘यमुना के पूर्व’ और ‘सतलुज के पश्चिम’ में बहती हुई बतलाया गया है ! उत्तर वैदिक ग्रंथों, जैसे ताण्डय और जैमिनीय ब्राह्मण ग्रंथो में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ बताया गया है ! महाभारतमें भी सरस्वती नदी के मरुस्थल में ‘विनाशन’ नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन आता है ! महाभारत में सरस्वती नदी के “प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती” आदि कई नाम हैं।
ऋग्वेद तथा अन्य पौराणिक वैदिक ग्रंथों में दिये सरस्वती नदी के सन्दर्भों के आधार पर कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली मौजूदा सूखी हुई घग्घर-हकरा नदी प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी, जो 5000-3000 ईसा पूर्व तक पूरे प्रवाह से बहती थी । उस समय सतलुज तथा यमुना की कुछ धाराएं सरस्वती नदी में आ कर मिलती थीं । इसके अतिरिक्त दो अन्य लुप्त हुई नदियाँ “दृष्टावदी” और “हिरण्यवती” भी सरस्वती की सहायक नदियाँ थीं ! लगभग 1900 ईसा पूर्व तक भूगर्भी बदलाव की वजह से यमुना, सतलुज ने अपना रास्ता बदल दिया तथा दृष्टावदी नदी के लगभग 2600 ईसा पूर्व सूख जाने के कारण सरस्वती नदी भी लुप्त हो गयी ।
सरस्वती नदी पौराणिक हिन्दू ग्रन्थों तथा ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से एक है । सरस्वती एक विशाल नदी थी जो पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई अरब सागर में जाकर विलीन हो जाती थी । नदी की विराटता को देखकर वैदिक कवि इतना अभिभूत है कि वह उसे नदीतमा कहकर ही नहीं रूक जाता, उसे माताओं में सबसे श्रेष्ठ और देवियों में सबसे बड़ी देवी कह उठता है-अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति, अप्रशस्ता इव स्मसि, प्रशस्तमम्ब नस्कृधि (ऋग्वेद 2.41.16) और मांगता क्या है? धन, क्योंकि वह कहता है कि वह निर्धन, अप्रशस्त है। तो सरस्वती कैसे धन देगी !
जाहिर है कि कवि के खेतों को जलसमृद्ध करके, और वेदों में सरस्वती के किनारे प्रभूत कृषि के दिलकश बयान खूब मिलते हैं जो पढ़ने लायक हैं। एक ओर यह नदीतमा सरस्वती और दूसरी ओर इसके पड़ोस में बहती सिन्धु जो आज भी भारत उपमहाद्वीप की नदीतमा है, दोनों मिलकर पूरे इलाके को उत्तर में समुद्रदर्शन का सुख देती थी ।
जहां नदी होगी वहां सभ्यता पनपेगी, खेती होगी, गांव बसेंगे, शहर फैलेंगे, इतिहास रचा जाएगा, तीर्थभावना पैदा होगी और उनके किनारे बसने वालों के रोम-रोम में वह नदी आ बसेगी। और जब सरस्वती जैसी नदीतमा होगी तो जाहिर है कि इन सभी बातों की घनता की डिग्री और ज्यादा बढ़ जाएगी।
इन सभी स्थलों पर सरस्वती बहती थी और खूब बहती थी। ब्राह्मण नाम वाले ग्रन्थ शतपथ ब्राह्मण, तैत्तिरीय ब्राह्मण, ऐतेरय ब्राह्मण जैसे ग्रंथों का निर्माण इसी नदी के तट पर हुआ था ! इसी सरस्वती के किनारे इतनी प्रबल मन्त्र रचना हुई, खासकर वसिष्ठ मैत्रावरफण ने इतने उच्चकोटि के सूक्त लिखे कि सरस्वती को विद्या का तीर्थ और केंद्र ही नहीं विद्या का रूप, विद्या की देवी मान लिया गया।
अति समृध सरस्वती नदी के उस पर से सूर्यवंश वैष्णव संस्कृति के पोषक राजा वैवस्वत मनु जब भारत आये तो सरजू नदी के तट पर अवध (अयोध्या) को अपनी राजधानी बना कर बस गये थे ! उनकी पीड़ी राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ कपिल मुनि के शाप से भस्म हुये अपने पूर्वजों के उद्धार के लिये गंगा को कैलाश मानसरोवर से हिमालय के ग्लेशियर को चीरते हुये भारत लाये ! गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो कुमायूँ में हिमालय के गौमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती हैं। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मन्दाकिनी है। यह काल सरस्वती नदी के बहुत बाद का है !
इस तरह निश्चित है कि गंगा के किनारे विकसित हुई संस्कृत सरस्वती नदी के तट पर विकसित संस्कृत से बहुत बात की संस्कृति है और वेदों के वह सनातन धर्म के ज्ञान के आरंभ औरविकास सरस्वती नदी के तट पर हुआ और इसका प्रचार प्रसार गंगा नदी के तट पर स्थित ऋषि मुनियों के आश्रमों से हुआ इस तरह भारत की मूल संस्कृति का विकास सरस्वती नदी के तट पर हुआ है और प्रचार प्रसार गंगा नदी के तट पर कई हजार वर्षों बाद हुआ ! इसी लिये वेदों में गंगा का वर्णन नहीं मिलता है !!