यह एक बहुत बड़ी भ्रांति है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने अंतिम समय में बौद्ध धर्म अपना लिया था ! जबकि सच्चाई यह है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य के दिशा निर्देश में लगभग 24 वर्ष तक शासन करने के बाद मोक्ष प्राप्ति की इच्छा से अपने अंतिम समय में जैन आचार्य भद्रबाहु से दीक्षा लेकर जैन धर्म के सिद्धांतों को आत्मसात कर लिया था !
और उन्हीं के साथ वह कर्णाटक के श्रवणबेलगोला में आकर अपने जीवन के अन्तिम दिनों में रहे ! इस समय उनकी आयु लगभग 48 वर्ष की थी !
चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म न केवल अपनाया बल्कि अपना सर्वस्व त्याग कर वह अंतिम समय में दिगम्बर जैन मुनि भी बन गये थे तथा जैनों के प्रसिद्ध तीर्थ श्रवणबेलगोला में स्थित “चंद्रगिरि” नामक एक पहाड़ी पर वह रहा करते थे ! वह दिगम्बर जैनों के एकमात्र और अंतिम मुकुटधारी मुनि थे !
चंद्रगुप्त मौर्य के बाद चंद्रगुप्त का पुत्र बिंदुसार मौर्य वंश का नया शासक बना ! जिसके विचार चाणक्य से नहीं मिले ! परिणाम यह हुआ कि बिंदुसार ने चाणक्य को दी जाने वाली सभी शासकीय सुविधाओं पर रोक लगा दी और चाणक्य की हत्या का षड्यंत्र रचने लगे !
जिससे चाणक्य को भी अपने अंतिम दिनों में मगध छोड़कर जाना पड़ा और बतलाया जाता है कि चाणक्य भी वृद्धावस्था में कर्नाटक की इन्हीं पहाड़ियों में कहीं अज्ञात रूप से निवास करने लगे थे !
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के पोते अशोक ने अपने 99 भाईयों की हत्या करने के बाद भारत विजय के लिये एक महा संग्राम लड़ा और समस्त भारत जितने के बाद वह मगध के शासक बने ! अन्तः उन्होंने भी लगभग 36 वर्षों तक शासन करने के बाद मानसिक शान्ति के प्राप्ति की इच्छा के लिये बौद्ध धर्म अपना लिया था !
और न केवल बौद्ध धर्म को अपनाया बल्कि अपने बच्चों को उस धर्म के प्रचार प्रसार के लिए विदेशों में भेजा। आज पूरी दुनिया में ख़ास तौर पर पूर्वी एवं दक्षिण पूर्वी एशिया जहां भी बौद्ध धर्म है, वो सम्राट अशोक के प्रचार की देन ही है !
किस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी सनातन धर्म का सर्वनाश मौर्य राजवंश ने किया और अन्त में 185 ईसापूर्व भारद्वाज गोत्र के श्रेष्ठ ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने अन्तिम मौर्य सम्राट राजा बृहद्रथ का सनातन धर्म विरोधी तथा अय्याश होने के कारण उसका संहार कर स्वयं को राजा घोषित कर दिया ! और भारत को पुन: हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया !
इस तरह पुष्यमित्र शुंग ने अपने 36 वर्ष के शासनकाल में सनातन धर्म की भारत में पुन: स्थापना की और उसने स्पष्ट निर्देश जारी किये कि जिस व्यक्ति के मस्तक पर सनातन धर्मी तिलक नहीं होगा ! उसका सर धड़ से अलग कर दिया जाएगा !
भारत की भूमि से बौद्ध धर्म को उखाड़ फेंकने में आदि गुरु शंकराचार्य, मंडन मिश्र, कुमारिल भट्ट के समानांतर श्रेष्ठ ब्राह्मण शासक पुष्यमित्र शुंग का भी बहुत बड़ा योगदान है !!